मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008

ब्रह्मात्‍मज के बहाने, इंटरनैट पर हिंदी

चिट्ठाकार पर देबाशीष जी ने एक कड़ी देकर इस समाचार की ओर ध्‍यान आकर्षित कराया है. समाचार इस बात पर केंद्रित है कि हिंदी की स्थिति क्‍या है? संदर्भ हैं हिंदी फिल्‍मों के जाने-माने समीक्षक अजय ब्रह्मात्‍मज द्वारा अपना ब्‍लॉग रोमन भाषा में लिखा जाना. मैं यहां ब्रह्मात्‍मज पर टिप्‍पणी नहीं कर रहा हूं बल्कि हिंदी के बारे में कुछ कहना चाहता हूं.

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2008

ब्‍लॉ‍ग जगत में अब बहस के नाम पर ऐसी गुंडागर्दी होगी


वाह दिलीप मंडल. मान गए आपको. मान गए कि आप एक अच्छे संपादक हैं. इसीलिए मेरी पूरी पोस्‍ट में से अपनी सुविधानुसार अंश छांट कर चिपका लिए. उससे भी बढि़या कारीगरी यह दिखाई क‍ि अजित वडनेरकर जी की टिप्‍पणी में करेक्‍शन भी लगा दिया. शायद आपने सोचा होगा कि उन्‍होंने गलती से बारोज़गार लिख दिया है.... सो उसे मिटाकर बेरोजगार कर देते हैं. बहुत खूब. बात को अपने पक्ष में बदलने का प्रयास कर रहे थे, या गालियां देने का कोई नया बहाना तलाश रहे थे....

बुधवार, 13 फ़रवरी 2008

दैनिक भास्‍कर में आज हिंदी ब्‍लॉग्‍स पर पूरा पेज

इंटरनैट पर हिंदी को भले ही आज प्रथम दस भाषाओं में शुमार नहीं किया जा रहा हो लेकिन सच यह है कि इंटरनैट पर हिंदी के चिट्ठों की दुनिया का दिन दूनी रात चौगुनी गति से विस्‍तार हो रहा है. इसलिए हिंदी चिट्ठों की बात हर ओर होने लगी है. भारत के प्रमुख हिंदी दैनिक समाचारपत्र दैनिक भास्‍कर में आज 14 फरवरी के अंक में एक पूरा पेज हिंदी ब्‍लॉग्‍स पर केंद्रित सामग्री के साथ प्रकाशित हुआ है.

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2008

कौन हैं वास्‍तव में दलित पत्रकार .....

अचानक संवेदनशीलता का ज्‍वार उमड़ पड़ा, मीडिया में दलितों की खोज हो रही है. इस बात पर बहस छेड़ने की कोशिश हो रही है कि मीडिया में दलित उपेक्षित क्‍यों हैं..... अचानक इसकी जरूरत क्‍यों आ पड़ी? किस छिपे हुए एजेंडे को लेकर यह षड्यंत्रपूर्ण बहस छेड़ी गई है? शायद बहस के लिए कोई और विषय नहीं बचा तो सोचा कि चलो यही पता करते हैं कि न्‍यूज़रूम में कितना जातिवाद है? गोया समाज में पहले से फैला जातिवाद कम है....

चिट्ठे का नया प्रकाशन स्‍थल

संजय उवाच को मैने अपने जालस्‍थल पर स्‍थानांतरित कर दिया है. नया पता यह है.... Sanjay Uvach http://www.sanjayuvach.com