शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2008

कौन हैं वास्‍तव में दलित पत्रकार .....

अचानक संवेदनशीलता का ज्‍वार उमड़ पड़ा, मीडिया में दलितों की खोज हो रही है. इस बात पर बहस छेड़ने की कोशिश हो रही है कि मीडिया में दलित उपेक्षित क्‍यों हैं..... अचानक इसकी जरूरत क्‍यों आ पड़ी? किस छिपे हुए एजेंडे को लेकर यह षड्यंत्रपूर्ण बहस छेड़ी गई है? शायद बहस के लिए कोई और विषय नहीं बचा तो सोचा कि चलो यही पता करते हैं कि न्‍यूज़रूम में कितना जातिवाद है? गोया समाज में पहले से फैला जातिवाद कम है....

सत्रह साल के अपने पत्रकारिता के कॅरियर में कभी मुझे इस बारे में सोचने की जरूरत नहीं पड़ी कि मेरे साथी कौन हैं, या कि क्‍या वे दलित हैं. इस दौरान शायद ही कभी ऐसा हुआ होगा, जब मेरे सहकर्मियों में कोई दलित नहीं था. मुझे तो सारे नाम याद करना भी कठिन लग रहा है क्‍योंकि उनकी तादाद बहुत है, शायद क्‍योंकि मैं कभी राजधानी में नहीं रहा. लेकिन सच्‍चाई तो यह है कि पंद्रह साल (क्‍योंकि पहले दो साल स्‍वतंत्र पत्रकार के रूप में गुजारे) पहले मुझे अखबार के दफ्तर में जबरदस्‍ती पहली नौकरी दिलवाने वाला मेरा दोस्‍त एक दलित ही था. और वे सवाल कर रहे हैं कि मीडिया में दलितों को नौकरी क्‍यों नहीं मिलती.

रही बात मीडिया में दलितों की तो सबसे कड़वा सच यह है कि मीडिया में वे सारे पत्रकार दलित हैं, जिन्‍हें उनकी मेहनत का उचित मुआवजा तक नहीं मिलता. वे दलित हैं जो आज भी महज ढाई-तीन हजार रुपए माहवार के एवज गधों की तरह काम करते हैं, न उन्‍हें भत्‍ते मिलते हैं, न फंड जमा होता है, न कोई अन्‍य सुविधा मिलती है. वे दलित हैं जिन्‍हें बिना किसी नोटिस के नौकरी से निकाल दिया जाता है. और दलित वे हैं जो सारे जहान के शोषण के खिलाफ लिखते हैं लेकिन उनके शोषण की बात कोई नहीं करता. वे खुद भी नहीं करते क्‍योंकि ढाई हजार रुपए की नौकरी गंवाने का माद्दा भी उनमें नहीं है.

तो कहिए कि वे कमजोर हैं, अपने शोषण के खिलाफ भी आवाज नहीं उठा सकते.... जी हां यही सच है. वे नहीं कर सकते. लेकिन उनके लिए कौन से सर्वे कराए गए आज तक? किसने पता लगाया कि देश के बहुसंख्‍यक मीडिया संस्‍थानों में पत्रकारों को वेतन आयोग की अनुशंसाओं के मुताबिक वेतन नहीं मिलता है? किसने उठाई ये आवाज कि उनके काम के घंटे तक तय नहीं हैं? किसी ने नहीं... !! और मीडिया के इन दलितों की जाति के बारे में मत पूछिए... वे हर जाति के हैं. ब्राह्मण और अन्‍य सवर्ण जातियों के पत्रकार भी इनमें शामिल हैं. वे पैदायशी दलित नहीं थे, उन्‍हें मीडिया ने दलित बना दिया.

जिनके पास लिखने को कोई मुद्दा नहीं बचा, वो ऐसे छद्म मुद्दों पर बहस करें. लिस्‍ट बनाएं कि कितने दलित पत्रकार हैं और किस मीडिया हाउस में किस पोस्‍ट पर बैठे हैं? यह गिरोहबंदी किस कलुषित एजेंडे को लागू कराने के लिए है, नहीं जानता? लेकिन कृपया पत्रकारों को जातिवाद के नाम पर बांटने के लिए इस सड़ाध मारती राजनीति का हिस्‍सा बनने पर विवश मत करें. न्‍यूजरूम में अब तक जातिवाद की गंदगी नहीं आई है. कृपया उसे साफ-सुथरा ही रहने दें. बड़े भाई अजित वडनेरकर जी ने इस कथित बहस की सच्‍चाई को सही भांपा और उससे अलग होने का सही फैसला किया.

मैं ब्राह्मण नहीं हूं, न दलित हूं. अब तक इस सवाल पर कभी विचार करने की जरूरत नहीं पड़ी इसलिए कभी सोचा भी नहीं और न आगे सोचूंगा कि मेरे साथी की जाति क्‍या है, मेरी जाति क्‍या है? आपको जरूरत है तो आप सोचें. फिर भी मुझसे मेरी जाति और नाम पूछेंगे तो आपके लिए मैं कल्‍लू चमार हूं. पेशे से पत्रकार हूं.

5 टिप्‍पणियां:

Batangad ने कहा…

सही है बेसिरपैर की चर्चा पर आपने बहुत सही कान के नीचे दिया है। पत्रकारों की जाति खोजने का काम तो बस। अब जाने दीजिए मौका लगा तो पूरी पोस्ट ही लिखूंगा। ...

Unknown ने कहा…

बिल्‍कुल सही बात है संजय जी। बिना बात ऐसे मुद्दे उछाले जाते है जिनका कोई सिरपैर नहीं होता।

संजय शर्मा ने कहा…

मतलब साफ है . सवर्णों के उदारवाद का जबाब ऐसे ही मिलता है .सतीश मिश्रा को चाणक्य मानने वालों को एक बार और सोचना होगा . सवर्णों को सवर्ण ही मात देता आया है ,प्रगतिशीलता के नाम पर या उदारवाद के नाम पर . बामपंथी सवर्ण और सतीश मिश्राओं जैसे सवर्ण का क्या कहना ?

जिसमे ताकत [योग्यता } होगी वह कहीं भी सफल होगा .आरक्षण और आक्रमण मे ज्यादा आकर्षण दलितों का ही है . आज मिडिया मे क्यों हैं ? कल्ह ये सवाल आने ही वाला है , सवर्ण सड़क पर क्यों है ? अपने घर मे क्यों है ? जबाब लेने ,सवाल करने वाला, ये होता कौन है ? जबाब हम सब क्या देंगे ? सच को लात मारती बहस का हिस्सा क्यों बने ?

शंकर आर्य ने कहा…

जब तक दलित शब्द जाति से जुड़ा होगा हम लोग ऐसी ही बहसों में उलझे रहंगे.
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वोटर्स की गिनती हो रही है.
मीडिया क्षेत्र में कहीं चुनाव (इलेक्शन) तो नहीं होने वाले हैं?

बेनामी ने कहा…

kya bat he sanjay ji jati shabd patrakaro ko bhi thop diya apne,abhi tak aap shayad 18bi shadi me ji rahe he,ap in sab se upar uthkar desh ki samasyao ko logo se avgat kraye taki desh ka vikas ho orlog apni sahi pritkriya in blog par de sake...........inhi bhavnao ke sath

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संजय उवाच को मैने अपने जालस्‍थल पर स्‍थानांतरित कर दिया है. नया पता यह है.... Sanjay Uvach http://www.sanjayuvach.com