इंसान की नस्लों में भेदभाव का चलन क्यों शुरू हुआ और कैसे शुरू हुआ यह तो मैं नहीं बता सकता क्योंकि मैं इस क्षेत्र का विशेषज्ञ नहीं हूं. लेकिन मैं यह देख सकता हूं कि हरभजन सिंह पर नस्लभेदी टिप्पणी करने का आरोप लगाकर प्रतिबंध का दंड देने में रंगभेद जरूर है. ध्यान दें मैने नस्लभेद नहीं रंगभेद कहा है. ये दोनों अलग अलग शब्द हैं तथापि दोनों का आशय किसी न किसी प्रकार के भेदभाव से है.
भारतीय होने के कारण रंगभेद का शिकार हमें सदियों पहले से बनाया जाता रहा है. मोहनदास करमचंद गांधी से लेकर शिल्पा शेट्टी तक यह सिलसिला बदस्तूर जारी है. हरभजन तो इसके एक और शिकार मात्र हैं. आप पूछ सकते हैं कि हरभजन पर तो आरोप है फिर वे शिकार कैसे हुए? जवाब यह है कि उन पर लगाया आरोप साबित नहीं होने के बावजूद दंडित किया जाना उनके साथ अन्याय था. इसलिए वे भेदभाव के आरोपी नहीं खुद इसके शिकार हैं.
हरभजन को इसलिए दंडित किया गया क्योंकि उनके खिलाफ गोरी चमड़ी वाले कुछ ऐसे लोगों ने गवाही दी, जो उन से लाख दर्जे ऊपर सचिन तेंदुलकर की गवाही से महत्वपूर्ण मानी गई. सचिन की गवाही भी इसीलिए नहीं मानी गई क्योंकि वे गोरी चमड़ी वाले नहीं हैं. यानि माइक प्रॉक्टर हो या माइक डेनिस (दक्षिण अफ्रीका दौरा) भारतीय कभी न कभी इन गोरों के शिकार बनते रहे हैं.
अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए ऑस्ट्रेलियाई कप्तान की रची इस साजिश में वह सचमुच का बंदरनुमा इंसान एंड्रयू सायमंड्स मोहरा बना. यह वही सायमंड्स है जो भारत में बड़ी डींग हांक कर गया था कि मैं सिर्फ खेल से मतलब रखता हूं और बात ठीक भी है. यह भी एक खेल ही था जो ब जरिये हरभजन भारतीय क्रिकेट टीम के साथ खेला गया.
पीटर रोबक जैसा समीक्षक ऑस्ट्रेलियाई टीम की थू-थू कर रहा है, तो समझा जा सकता है कि इन गोरों ने क्या किया. इन्होंने भद्र पुरुषों के खेल के साथ बहुत अभद्रता की है. खेलों को हमेशा से भाईचारे और सद्भाव का संदेश सारी दुनिया में फैलाने का सबसे सशक्त माध्यम माना जाता रहा है. लेकिन ऑस्ट्रेलियाई टीम ने जो कुछ किया उससे न केवल क्रिकेट बल्कि सारी खेल बिरादरी शर्मसार हो रही है.
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को इस मामले में कड़ा रवैया बरकरार रखना होगा वरना यह भेदभाव का सिलसिला रुकने वाला नहीं है. यह केवल खेल की बात नहीं है. टीम भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है इसलिए खिलाडियों का अपमान भारत का भी अपमान है. यदि बीसीसीआई की नजर में इसकी भी अहमियत नहीं है तो लानत है उन पर. यदि हरभजन को निर्दोष नहीं माना जाता तो भारत को दौरा समाप्त कर देना चाहिए.
अपने आप को सर्वश्रेष्ठ समझने का दंभ इन गोरी चमड़ी वाले बंदरों में सचमुच बहुत ज्यादा है. ये विश्व चैंपियन जरूर हैं पर एक इंसान के रूप में इनका कद बहुत बौना है. रेकार्ड बुक में सिडनी टैस्ट भले ही ऑस्ट्रेलिया ने जीता लेकिन सच्चाई सब जानते हैं. वे भी जिन्होंने यह साजिश रच कर खेल को शर्मिंदा किया. इनकी गोरी चमड़ी के नीचे काला दिल है. वे सिर्फ मैच जीते हैं लेकिन हरने वाली सिर्फ भारतीय टीम नहीं है क्योंकि सिडनी में क्रिकेट भी हारा है.
संजय का कार्य सब कुछ देखना और उन्हें सुनाना है जो नहीं देख पाए. संजय ने तब भी यही किया था, अब भी यही कर रहा है.
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1 टिप्पणी:
अच्छी खबर ली है प्यारे ....इसे जारी रखो , गालियों का गुबार निकले न निकले, हसरत हो जाए पूरी....
देशप्रेम की
ईमानदारी की
अपनापे की
शुभकामनाएं...
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